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New bites

इस दुनिया में पुरूषार्थ से वस्तु अथवा पदार्थ का मिलना कठिन नहीं अपितु मिल जाने के बाद उसको पचा पाना कठिन है।
भोजन ना पचने पर रोग बढ़ जाता है, ज्ञान ना पचने पर प्रदर्शन बढ़ जाता है और पैसा ना पचने पर अनाचार बढ़ जाता है। प्रशंसा ना पचने पर अहंकार बढ़ जाता है, सुख ना पचने पर पाप बढ़ जाता है और सम्मान ना पचने पर तामस बढ़ जाता है।

भोजन पचने पर वह शरीर की पुष्टी में लग जायेगा, ज्ञान पचने पर वह प्रदर्शन न कर आत्मदर्शन में लग जायेगा और पैसा पचने पर वह परोपकार जैसे धर्म कार्यों में लग जायेगा। प्रशंसा पचने पर वह आत्ममंथन अथवा आत्म मूल्यांकन में लग जायेगी, सुख पचने पर वह सदमार्ग की ओर ले जायेगा एवं सम्मान पचने पर वह भी जीवन में स्थिरता एवं सहजता को प्रदान कर देगा।

dharnidharpareek8400

इत्र, मित्र, चित्र और चरित्र
किसी की पहचान के मोहताज़ नहीं..
ये चारों अपना परिचय स्वयं देते हैं।

#_kisuu 💞
#Character 🤗

avinashparmar224012

"કડવી‌ વાતોનો સ્વીકાર કર"

કડવા વેણ અને જુઠ્ઠા વેણમાં કેટલો ફર્ક, એક મનુષ્યને સમૃદ્ધિ- સુખ તરફ અને એક વિનાશ-દુ:ખ તરફ લઈ જાય છે.

મનોજ નાવડીયા

manojnavadiya7402

चिंताओं की गठरी बाँधे.. ...

चिंताओं की गठरी बाँधे, जीवन भर ढोए।
स्वार्थी रिश्ते-नातों ने ही, पथ-काँटे बोए।।

संसाधन के जोड़-तोड़ में, हाड़ सभी तोड़े।
एक लंगोटी रही हमारी, बाकी सब खोए।।

मोटी-मोटी पढ़ी किताबें, काम नहीं आईं।
जाने-अनजाने में हमतो, आँख मींच सोए।।

होती चिंता,चिता की तरह, समझाया मन को ।
नहीं किसी को मुक्ति मिली है, हार मान रोए।।

प्रारब्धों के मकड़ जाल में, उलझ गए हम सब।
पाप पुण्य के फेरे में पड़, पुण्य सभी धोए।।

मनोजकुमार शुक्ल " मनोज "

manojkumarshukla2029

we met some people just to make memories !

nidhishree3009

shreeshah

bhavnabhatt154654

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rakeshsolanki1054

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rakeshsolanki1054

bhavnabhatt154654

bhavnabhatt154654

bhavnabhatt154654

" जीवन में हो सूनापन
ऐसे में हो अकेलापन,,
उसमें ये खामोश किताबें
बहेलाती है मेरा मन ..."

अमी की पुरानी डायरी से..
#Book

hitumodimodihitu000gmail.com104112

वो हमसे बड़ी अदब से पूछते हैं।
हम क्या हैं जनाब आपके लिए ?

हमने बड़ी ही नजाकत से जवाब दिया।
कैसे कहे क्या है ? आप हमारे लिए।

निगाहों के रास्ते से लेजाकर आपको,,
दिल के झरोखे में यूं संभाल कर बिठाया है।

बस यूं समजिए आप हमारी किताब में,,
बरसों से संभाल कर रखा हुआ वो गुलाब हो।

जीस गुलाब में सुगंध भले ही ना बची हो।
लेकिन मोहब्बत वैसे की वैसी आज तक है।

भले ही उस गुलाब की पंखुड़ियां सूख चुकी हो।
मगर वो लगाव का एहसास आज भी ताझा है।

आज भी ये दिल आपको सोच कर झूम उठता है।
बस हम झमाने के सामने ये बात जाया नहीं करते है।

न जाने उन्हीं से यूं इतनी मोहब्बत क्युं हो जाती है।
जो झहन में तो हमेशा रहते हैं बस तकदीर में नहीं होते है।

अमी....


#Book

hitumodimodihitu000gmail.com104112

Book...

hemantparmar9337

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hemantparmar9337