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New bites

घटना का अर्थ — एक संवैधानिक संकेत ✧
एक वकील ने सर्वोच्च न्यायालय में जूता फेंका।
कानून कहेगा — यह अपराध है,
पर विवेक कहेगा — यह संदेश है।

क्योंकि जो व्यक्ति न्याय की दीवारों के भीतर सांस लेता है,
वही अगर अन्याय महसूस करे,
तो यह देश के संविधान की आत्मा के लिए चेतावनी है।

यह घटना केवल एक आवेग नहीं,
बल्कि उस गहरी दरार का प्रतिबिंब है
जहाँ जनता और न्यायपालिका के बीच भरोसा कमज़ोर पड़ गया है।

संसद में कानून फाड़े जाएँ तो उसे राजनीति कहा जाता है,
पर अदालत में सवाल उठे तो अपराध।
यह असमानता लोकतंत्र की आत्मा को घायल करती है।

न्यायपालिका चाहे तो इसे अपराध कहे और दंड दे,
या इसे संकेत समझे और आत्ममंथन करे —
चुनाव उसका है,
पर परिणाम पूरे राष्ट्र का होगा।

क्योंकि जब कानून जनता से दूर हो जाता है,
तब संविधान बचा तो रहता है,
पर जीवित नहीं रहता।

bhutaji

हया और अदा — एक नज़्म ✧

हया से पलकें झुका ली उसने,
जैसे चाँद बादल में खो जाए,
मगर नूर फिर भी टपकता रहा,
हर कोने में दिल के सरकता रहा।

अदा से फिर मुस्कुरा दी उसने,
मानो सदीयों की ख़ामोशी बोल पड़ी,
वो मुस्कान — एक तीर थी नर्म मख़मली,
जो सीने से दिल तक उतर पड़ी।

कितना आसान है उनके लिए,
यूँ नज़रों से क़यामत बरपा देना,
हया में परदा रखना,
अदा से पर्दा हटा देना।

लोग कहते हैं — बिजली गिरा दी हसीना ने!
पर असल में तो,
उसने किसी बुझी रूह में चिंगारी जगा दी।

हया उनका पर्दा है,
अदा उनका इकरार,
और जो इस बीच ठहर जाए —
वही सच्चा दीदार।

🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

bhutaji

STILL LOOKING FOR YOU..
I hate that I still check my phone,
like maybe this time, you’ll text back.
Your name still sits in my chest,
like a wound that never learned to fade.

Every night, I talk to your silence,
asking questions you’ll never hear.
The memories replay like old songs,
and I still hum along, even though they hurt.

You left so quietly,
but the noise you left behind never stopped.
I still wear the ache like perfume,
hoping you’ll recognize the scent.

Maybe I’ll heal someday,
but tonight —
I just miss you,
and that’s all I know how to do.

khushitiwari041644

🌹➖* कडवा सच *➖🌹
प्यार ओर उधार सबको मत दिजिए।
क्योकि
बूरी नियतवाले कभी इसे
वापस नही करते।

jighnasasolanki210025

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rajukumarchaudhary502010

ममता गिरीश त्रिवेदी की कविताएं
कविता का शीर्षक है 🌹 ज्ञान का उजाला
ज्ञान का उजाला,ज्ञानी जाने
ज्ञान के दिया बाती ,सुलगाए
सारे जहां में ज्ञान ,फैलाएं
प्रकाशित रोशनी में ,ज्ञान समाये
लेखिका ममता गिरीश त्रिवेदी

https://youtube.com/shorts/aB143D_8u6U?si=FSFNA4LiDqEsPYDU
यूट्यूब पर देखिए ममता गिरीश त्रिवेदी की कविता का वीडियो 🌹काले बादल

mamtatrivedi444291

😂😂😂😂😂

jighnasasolanki210025

Honoring Maharishi Valmiki, whose wisdom illuminated the path of truth — just as clear vision illuminates life. 🌟 #ValmikiJayanti #NetramEyeFoundation

netrameyecentre

घूंघट — स्त्री का मौन, पुरुष की परीक्षा।
स्त्री जब प्रेम करती है —
वह भीतर उतरती है, बहुत भीतर।
इतनी गहराई तक कि उसका शरीर पीछे रह जाता है,
और केवल एक ऊर्जा, एक स्पंदन बचता है।
वह परदे में जाती है, छिपने के लिए नहीं —
बल्कि अपने रहस्य को बचाने के लिए।

स्त्री का पर्दा कोई सामाजिक बंधन नहीं,
वह उसकी गरिमा है, उसकी साधना है।
यह पर्दा उन असंवेदनशील पुरुषों से रक्षा है
जो केवल देह देखते हैं —
और उन संवेदनशील पुरुषों के लिए एक द्वार है
जो आत्मा को देख सकें।

स्त्री का घूंघट धर्म नहीं, रहस्य है।
वह भीतर उतरने की विधि है —
जहाँ लज्जा भी शक्ति है,
और मौन भी आमंत्रण।
यही उसकी रास है,
जहाँ वह प्रेम में जलकर
ऊर्जा में बदल जाती है।

जब स्त्री पुरुष जैसी बन जाती है —
बाहर की, प्रदर्शन की, प्रतिस्पर्धा की —
तो रास खो जाता है।
रहस्य मिटता है, आकर्षण बुझ जाता है।
स्त्री की सुंदरता उसके अधखुलेपन में है —
उस ओस में जो सब नहीं देख पाते,
उस नज़र में जो आधी झुकी रहती है।
वह ढंकना नहीं,
प्रेम की कला है —
जहाँ छिपना ही दिखना है।

जीवन में बहुत नशे हैं —
धन, सत्ता, विजय, स्वप्न —
पर सबसे पवित्र नशा है
स्त्री और पुरुष का प्रेम।
यह नशा देह का नहीं,
प्रकृति और चेतना के मिलन का है।
यहाँ दोनों मुक्त होते हैं —
क्योंकि एक ही क्षण में
सृष्टि भी घटती है, समाधि भी।

इसीलिए भारतीय परंपरा ने कहा —
सीता–राम, राधे–कृष्ण, शिव–शक्ति।
यह नाम केवल युगल नहीं हैं,
ये सृष्टि और चेतना के सूत्र हैं।
जहाँ पुरुष स्थिर है,
स्त्री प्रवाह है।
जहाँ पुरुष मौन है,
स्त्री राग है।
दोनों मिलें —
तो ब्रह्म प्रकट होता है।

स्त्री का प्रेम मुक्ति का मार्ग है,
और पुरुष की समाधि उसी प्रेम का चरम रूप।
जब प्रेम सच्चा होता है,
तो दोनों एक-दूसरे में लय हो जाते हैं —
वह रास, वह आनंद, वही ब्रह्मानुभव।

प्रेम दो की मुक्ति है,
और समाधि स्वयं की।
प्रेम से सृष्टि होती है,
समाधि से मुक्त‌ि।
और यही भारतीय सभ्यता का रहस्य है —
जहाँ हर स्त्री में प्रकृति है,
और हर पुरुष में परमात्मा।

✍🏻 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

bhutaji

लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास NDA गठबंधन जनपद बहराइच मटेरा विधानसभा 284

moahadkhan731652

💭 विचार — “पहले तुम स्त्री बनो”

पहले तुम स्त्री बनो,
फिर चाहे प्रेमिका बनना, पत्नी बनना या देवी बन जाना।
क्योंकि जब तक तुम स्त्री के दुख, संघर्ष, और मौन की भाषा नहीं समझती,
तब तक तुम्हारा प्रेम भी अधूरा रहेगा।

आज की सबसे बड़ी विडंबना यही है —
स्त्री ही स्त्री की सबसे बड़ी शत्रु बन बैठी है।
वो दूसरी स्त्री के आँसू नहीं देखती,
बस उसकी मुस्कान से जल उठती है।
किसी की मजबूरी को मज़ाक बना देती है,
और किसी के दर्द को “ड्रामा” कहकर टाल देती है।

कभी किसी की जगह खुद को रखकर देखो —
कितना कठिन होता है मौन रहकर जीना,
कितना पीड़ादायक होता है सहना और मुस्कुराना एक साथ।

स्त्री अगर स्त्री को समझने लगे,
तो यह दुनिया और कोमल हो जाएगी।
फिर किसी को प्रेमिका या पत्नी कहलाने से पहले
मानव और संवेदना की पहचान नहीं खोनी पड़ेगी।

पहले तुम स्त्री बनो —
क्योंकि स्त्री होना ही सबसे बड़ा धर्म है,
सबसे बड़ी साधना,
और सबसे गहरा प्रेम।

इस विचार का मतलब यह नहीं की पत्नी की जगह छीन ली जाए
प्रेमिका अपने पति की patni बनो,
Kisi dusre ki Pati ki Premika nhi bano

archanalekhikha

भारतीय समाज ने धर्म के नाम पर पत्नी को व्यवस्था दी —
शरीर की, परिवार की, वंश की।
पर प्रेमिका को कोई स्थान नहीं दिया,
क्योंकि प्रेमिका व्यवस्था नहीं होती —
वह स्वच्छंद होती है, आत्मा की अग्नि में जन्मी।

पत्नी देह का धर्म निभाती है,
प्रेमिका हृदय का।
एक बंधन में टिकती है,
दूसरी उस बंधन को भस्म कर देती है।

कृष्ण और राधा का संबंध इसी रहस्य का प्रतीक है।
राधा पत्नी नहीं थीं —
वह तो कृष्ण की आत्मा का दर्पण थीं।
उनका प्रेम सांसारिक नहीं था,
बल्कि उस बिंदु पर था जहाँ दो आत्माएँ मिलकर
अपनी अलग पहचान खो देती हैं।

विवाह का धर्म देह को बाँधता है,
प्रेम का धर्म आत्मा को मुक्त करता है।
इसलिए राधा का न मिलना ही उनका मिलन था —
क्योंकि वहाँ कोई पाने की इच्छा नहीं थी,
सिर्फ पूर्ण समर्पण था।

कृष्ण किसी के पति नहीं थे —
वे स्वयं प्रेम थे।
उनकी १६,१०८ स्त्रियाँ पत्नी नहीं थीं,
वे आत्माएँ थीं —
जो जन्मों से कृष्ण के प्रति प्रेम में जलीं,
भक्ति में पिघलीं,
और अंततः उसी में मुक्त हुईं।

कृष्ण ने उन्हें विवाह का बंधन नहीं दिया,
बल्कि मुक्ति का आशीर्वाद दिया।
समाज ने उन्हें “पत्नी” कहा ताकि व्यवस्था संभली रहे,
पर वे वास्तव में प्रेमिकाएँ थीं —
जिनका संबंध देह से नहीं,
प्रेम से था।

रुक्मिणी, सत्यभामा, जाम्बवती —
ये थीं धर्म के अंतर्गत पत्नियाँ,
जो कृष्ण के जीवन का भाग थीं।
पर राधा और वे १६,००० स्त्रियाँ —
कृष्ण के अस्तित्व का विस्तार थीं।

राधा प्रेम की अग्नि थीं,
वे कृष्ण में जल गईं,
इसलिए पत्नी नहीं बन सकीं।
पत्नी धर्म निभाती है,
प्रेमिका धर्म भस्म कर देती है।

कृष्ण ने जिन स्त्रियों को “अपनी” कहा,
उनका अर्थ स्वामित्व नहीं था,
बल्कि एकता थी —
जहाँ “मैं” और “तू” मिट जाते हैं,
और केवल प्रेम बचता है।

जहाँ प्रेम शुद्ध होता है,
वहाँ न पाप बचता है, न पुण्य —
न धर्म, न अधर्म —
केवल रस रहता है,
और वही रस लीला कहलाता है।

कृष्ण–राधा का प्रेम उसी लीला का शिखर है —
जहाँ देह विलीन हो जाती है,
और केवल प्रेम शेष रहता है।

वहीं से आरंभ होता है वह सत्य —
जहाँ मनुष्य कुछ पाना नहीं चाहता,
क्योंकि वह पहले ही प्रेम में खो चुका होता है।

✍🏻 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

bhutaji

એક વિચાર
( ભોજનમાં મિઠાસ)
- કૌશિક દવે

વિચારો કે તમે જુના જમાનામાં છો.
લાકડા અને કોલસો વાપરો છો.

આ વપરાશ કરવાથી કાળો ધૂમાડો થતો હતો.
પણ જમવામાં મિઠાસ આવતી હતી.
હેત અને પ્રેમથી લોકો જમતા અને જમાડતા હતા.

જમાનો બદલાયો.
લગભગ દર બીજે ત્રીજે દિવસે કે શનિવાર અને રવિવારે બહાર જમવાનું વધી ગયું કે ઓનલાઇન મંગાવવાનું વધી ગયું.
દેખાદેખી અને દેખાડો થવા લાગ્યો અને પહેલા જેવો પ્રેમ પણ રહ્યો નથી.

ગેસ પર બનતી વાનગીઓમાં પહેલા જેવી મિઠાસ લાગતી નથી કે ઓછી મિઠાસ લાગે છે.
હા..જો ગેસ પર ભાવથી બનાવેલી વાનગીઓને હેત, પ્રેમ અને ભાવથી પીરસવામાં આવે તો મિઠાસ જરૂર આવે છે.
વાનગીઓ બનાવનાર ગૃહિણી પર આધારિત છે.
અને ભોજન આગ્રહ કરીને જમાડે તો પણ એમાં એનો સ્નેહ ભાવ દેખાય છે.

ટુંકમાં કહું તો પ્રેમથી પીરસેલી ખિચડી કે રોટલો પણ મીઠો લાગે છે.
- કૌશિક દવે

kaushikdave4631

এই প্ল্যাটফর্মে অনেক সমস্যা দেখছি। নিয়মিত লেখা পোস্ট করার পর কে গল্প পড়লো, তার কেমন লাগলো, এই সব মন্তব্যের কোনো জায়গায় দেখছি না। লেখক ও পাঠকের যোগাযোগের কোনো উপায়ে নেই। গতকাল আমি পোস্ট করলাম যে "মিশন ইন্ডিয়ানা"র ১০টা পর্ব যারা পড়েছে তারা রিপ্লাই দাও। কারোর থেকে কোনো রিপ্লাই পেলাম না। আমি দুঃখিত। এই "মিশন ইন্ডিয়ানা" গল্পটা আর এখানে কানটিনিউ করতে পারছি না।

deep86

कई अनकहे किस्से
शब्दों को ढूंढ़ लाते हैं ,
-----
फुर्सत हो
तो आकर सुन जाना.
#डॉ_अनामिका
#हिंदी_का_विस्तार #हिंदी_पंक्तियाँ #हिंदी_शब्द

rsinha9090gmailcom

તને જોયા પછી પૂનમનો ચાંદ પણ ફિક્કો લાગે.!! કેમકે તેના ચહેરા પર ડાઘ છે.
તું તો ચમકતી છે,ચાંદની ગાલે ડાઘ ના તું એકમથી અમાસ છે.
. - વાત્સલ્ય

savdanjimakwana3600

Good morning friends have a great day

kattupayas.101947

🙏सुप्रभात 🙏
आपका दिन मंगलमय हो 🌄

sonishakya18273gmail.com308865

मैं


मैंने बताना तो चाहा,
तुमने सुना क्यों नहीं?
मैंने जताना तो चाहा,
तुम्हें यक़ी हुआ ही नहीं?

तुम्हें इंतज़ार रहा,
मेरे पलट जाने का।
मैं सोचती रह गयी,
तुमने पुकारा क्यों नहीं?

पल बीतें, मौसम बदले,
वक़्त ठहरा ही नही।
बदलती रहीं तारीखें,
हम बदले क्यों नहीं?

छोड़ देते काश,
अपने "मैं" को हम।
हम सोचते ही रहे,
हमसे हुआ क्यों नही?



मधु शलिनी वर्मा

madhushaliniverma056780

हथेली में तो मैं रहती हूँ।


आज कल क़िताबों की दुनिया में,
तुम्हें जी लिया करती हूँ।
तुम हक़ीक़त में जीते हो,
मैं फैंटसी में तुम्हें पा लिया करती हूँ।।

पढ़नी आती है, तुम्हें सबकी किस्मत,
तो, जरूर मेरा भी पढ़ा होगा।
तारीख और वक़्त के हिसाब से,
पलड़ो में जरूर मुझे भी तौल होगा।।

इल्म तो होगा तुम्हे जरूर,
मेरी तीरगी से भरी,
जिंदगी और फ़सानो का।
तभी, कुछ सुनहरे पल बिखेर कर,
खुश हो लेने के लिए,
मुझे अकेला छोड़ा होगा।।

मुमकिन हैं, कभी पढ़ के,
मेरी नही, अपनी क़िस्मत,
तुम मुझे जान पाओगे।
मुकम्मिल होगा ये,
जब तारीखों के साथ,
लकीरों को भी पढ़ना सिख जाओगे।।

क्योंकि छोटी ही सही,
तुम्हारी हथेली में,
मेरे नाम की भी इक लकीर है।
तारीखे झूठी हो सकती है,
लकीरें तोें बस सच की
हीं जुबां बोलती हैं।।

और गर फिर भी,
दिलो-ओ-दिमाग में,
मैं तुम्हारे आती नहीं हूँ।
हमसफ़र, हमदम, हमराज़,
या दोस्त भी कहलाती नही हूँ।।

तो, फिर चलो,
ये सोच के ही खुश हो रहती हूँ।
तुम्हारे दिल मे न सही,
हथेली में तो मैं रहती हूँ।।


मधु शलिनी वर्मा

madhushaliniverma056780

શરદ પૂનમ😊

s13jyahoo.co.uk3258

શુભ રાત્રી

mrsfaridadesar

**मरे हुए लोग**

वे लोग जो रोज़ सांस लेते हैं,
पर जिनमें जीवन नहीं होता।
जिनकी आँखों में कोई सपना नहीं,
चेहरे पर कोई प्रकाश नहीं—
बस एक निःशब्द अंधकार का बोझ।

वे चलते हैं, बोलते हैं, खाते हैं,
पर कुछ *महसूस* नहीं करते।
किसी की पीड़ा उन्हें नहीं छूती,
किसी की पुकार कानों तक नहीं जाती।
उनके दिलों के दरवाज़े,
लालच और स्वार्थ के ताले में बंद हैं।

वे हँसते हैं—पर मशीन की तरह,
बोलते हैं—पर मन के बिना।
उनके भीतर आत्मा नहीं,
बस एक निर्धारक प्रोग्राम चलता है—
“कैसे अपने स्वार्थ को पूरा किया जाए।”

इन जीवित लाशों के बीच
मानवता सिसकती है।
संवेदना एक पुरानी किताब बन गई है,
जिसे अब कोई पलटता नहीं।
करुणा का नाम अब मज़ाक है,
और ईमानदारी एक मूर्खता।

सड़कों पर भीड़ है, पर मनुष्यता नहीं।
हर चेहरा मुखौटे में है,
हर नज़र किसी छल की गणना कर रही है।
ये वही लोग हैं—
जो ज़िंदा होकर भी कब्रों में सोते हैं।

कभी किसी रोते बच्चे की आवाज़
इन पाषाणों से टकराकर लौट आती है,
कभी कोई वृद्ध गिड़गिड़ाता है—
पर ये बुत हिलते भी नहीं।
जिन्हें अपने सिवा किसी का होना
महसूस ही नहीं होता—
वे ही हैं *जीवित रूपी मृत लोग*।

और शायद यही सबसे बड़ा शोक है—
कि अब मृत्यु से डर नहीं लगता,
मनुष्यता की मृत्यु तो पहले ही हो चुकी है।

आर्यमौलिक

deepakbundela7179