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New bites

याद रखना, मैं जैसी हूँ वैसी,
सबको याद रहूँगी।

दुनिया को बताना ज़रूरी नहीं,
मेरी मौजूदगी ही मेरी पहचान बनेगी।

शोर बिना, दावे बिना,
मेरे स्वभाव और मेरी काबिलियत से,

लोग ख़ुद मजबूर हो जाएँगे
मुझे याद रखने के लिए

ढमक।

heenagopiyani.493689

betiya❤️

desaipragati1108gmail.com102305

મૃગજળની પાછળ જોને
દોડ્યાં હતાં રણમાં
ઝાંઝવાનાં નીર છતાં
પખાળ્યાંતા પ્રણયમાં…
-કામિની

kamini6601

🦋...𝕊𝕦ℕ𝕠 ┤_★__
वही दर्द है, वही प्यास पहचान
            मेरी हो गई,

तू जो रूठी तो मुकम्मल दुनिया
           वीरान हो गई,

​मिले थे कभी हम भी, महकते
         गुलाब की तरह,

बिछड़े कुछ यूँ कि अब यादें भी
         बेजान हो गई…🔥
╭─❀💔༻ 
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♦❙❙➛ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी•❙❙♦
 #LoVeAaShiQ_SinGh
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loveguruaashiq.661810

Do You Know that the law of nature is such that if you are pure, no one can harm you? So destroy your mistakes.

Read more on: https://dbf.adalaj.org/DlNmvXnE

#spirituality #spiritualpost #forgiveness #DadaBhagwanFoundation

dadabhagwan1150

તારી આંગળીનો સ્પર્શ પામવા માટે...
જાણી જોઈને હું વાળની એક લટ છુટ્ટી મુકું છુ...
✍️...જાનવી
હા, એટલે જ તારી લટ ગમે છે એટલે જ તારી લત લાગી છે.
સાચું કહું તો એ લટની પેલે પાર મલકાતું મુખડું જોવા આંખો તરસી છે.
. - વાત્સલ્ય

savdanjimakwana3600

सूखी डाली और सूखे पत्ते कभी...✍️

jaiprakash413885

" ભાર લઈને ફરું છું "

ત્રણ શબ્દ ન કહી શકવાનો ભાર લઈને ફરું છું.
પ્રણયની આ રમતમાં હું હાર લઈને ફરું છું.

કઠપૂતળીના મંચ જેવું, બનતું ગયું છે જીવન,
એક મુખોટે રોજ નવો કિરદાર લઈને ફરું છું.

કળવા નથી દેતો કોઈને આ હૃદયની વ્યથાને,
ભીતરમાં એવો એક અદાકાર લઈને ફરું છું.

સમાવી બેઠો છું સાત સમંદર આ આંખોમાં,
હસતી આંખોમાં પણ હું ક્ષાર લઈને ફરું છું.

આમ જુઓ તો છે હર કોઈનો સાથ સંગાથ,
ને આમ જુઓ તો સૂનો સંસાર લઈને ફરું છું.

ઝગમગાતો રહું છું "વ્યોમ" માફક બહારથી,
પણ શું કહું? અંદર એક અંધકાર લઈને ફરું છું.

✍...© વિનોદ. મો. સોલંકી "વ્યોમ"
GETCO (GEB), મુ. રાપર.

omjay818

માણસને જોઈએ વધારે એને એ કંઈ મળતું નથી,
હાથમાં જે મળ્યું છે તેનું મૂલ્ય એને કંઈ ભાસતું નથી,

સપનાઓના ભાર નીચે શ્વાસ પણ ભારે બન્યો છે,
અપેક્ષાઓના ભારથી આ મન કદી હળવું થતું નથી,

દૂર દૂર સુધી શોધે છે સુખ રેતીના પાકાં મકાનોમાં,
પોતાની અંદરના પ્રકાશને એ ઝળહળાવતો નથી,

સમય સરકી જાય છે મુઠ્ઠીમાં રહેલી રેતી સમો,
પછી રઝળી ગયેલી પળો કંઈ પાછી મળતી નથી,

થોડો ઊભો રહી જોઈ લે પોતાના મનની અંદર,
બહાર જે શોધે છે એ બહાર ક્યાંય મળતું નથી,

થોડી ઇચ્છાઓ પણ છોડે ત્યારે સમજાશે જીવન,
સંતોષ વિના આ જગતમાં કોઈ સુખ ટકતું નથી.

મનોજ નાવડીયા

#manojnavadiyapoetry #kavita #poem #manojnavadiya #manojnavadiyabooks #life #lifelessons #nature #universe #knowyourself #goodvibes #doggod

manojnavadiya7402

🙏🙏सुप्रभात 🙏🙏
🌹 आपका दिन मंगलमय हो 🌹

sonishakya18273gmail.com308865

Good morning friends..have a great day

kattupayas.101947

🦋...𝕊𝕦ℕ𝕠 ┤_★__
उजाले माँगे थे मैंने और अंधेरा
              पाया है…🥀

मोहब्बत की राह में बस धोखा
             खाया है…🔥
╭─❀💔༻ 
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♦❙❙➛ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी•❙❙♦
#LoVeAaShiQ_SinGh
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loveguruaashiq.661810

*ॐ नमः शिवाय।*

नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे
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"तुम सदैव कह सकते हो कि प्रतिमा ईश्वर है,
केवल यही सोचने की भूल से बचना की ईश्वर प्रतिमा है ।"
'स्वामी विवेकानंद'

जड़त्व में ईश्वर है >< ईश्वर में जड़त्व नहीं है

🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷🪷

drdeepaksikkagmailco

*The 12 Kalas of the Sun:*

Tapini — Containing heat
Taapini — Emanating heat
Dhumra — Smoky
Marichi — Ray-Producing
Jvalini — Burning
Ruchi — Lustrous
Sudhumra — Smoky Red (as if fire seen through smoke)
Bhogada — Granting enjoyment
Vishva — Universal

drdeepaksikkagmailco

मुजरे सी होती है वफ़ादारी

लोग देखना चाहते हैं, करना नहीं

anisroshan324329

अंजान शहर में बैठा जाकर ढूँढने सुकून
मेरे बर्बाद ख़यालों ने हर शहर मेरा घर कर दिया।

anisroshan324329

So sad that IndvsSa match getting delayed. Goodnight friends. sweet dreams

kattupayas.101947

😃😃😃

s13jyahoo.co.uk3258

कभी-कभी
दवा भी चुप हो जाती है
और दुआ भी थक जाती है…
तब इंसान समझता है
कि ज़िंदगी सिर्फ़ बचने का नाम नहीं,
खुद को महसूस करने का नाम भी है।
जैसे
अंधेरी रात में जला छोटा-सा दिया
पूरे अंधेरे को नहीं हराता,
लेकिन इतना ज़रूर कह देता है—
“रोशनी अभी ज़िंदा है।”
अगर आज मन भारी है,
अगर दिल थका हुआ है,
तो याद रखना—
यह अंत नहीं,
यह तुम्हारी ताक़त का ठहराव है।
ख़ामोशी भी कभी-कभी
सबसे ऊँची आवाज़ बन जाती है,
बस सही दिल तक पहुँचने की देर होती है।
तुम टूटे नहीं हो,
तुम बन रहे हो।
— Nensi Vithalani

nensivithalani.210365

શીર્ષક- સાચો માર્ગ

પહેલો મેસેજ કોન કરશે?
પહેલું અભિનંદન કોણ કરશે?
આ તે કેવો માર્ગ
જ્યાં નથી રહી કોઈની લાગણી
બસ રીત છે દેખાદેખીની
માર્ગ સાચો છે કે ખોટો
એ નક્કી કરે છે google map
રહેવા માટે રહેઠાણ ક્યાં રહ્યા છે હવે
ઠેર ઠેર છે મકાન
જેના દરેક ખૂણે ખૂણે છે કાન
રીત નથી કોઈ, ચિત નથી કોઈ
નથી કોઈ સાચી વાત
બસ રીત છે એક કરવી અદેખાઈ
આમાં કેવી રીતે મળશે સાચો માર્ગ

✍️ ખુશાલી એ પરીખ

khushali23

🦋...𝕊𝕦ℕ𝕠 ┤_★__
समेटना तो चाहा था मैंने तुम्हें मेरी
गिरह में,

मगर पकड़ तेरे हाथों की तुमने ही
ढीली रखी थी,

वफ़ा की राह में हम तो ज़माने से
भी लड़ जाते,

कमी यह थी कि बुनियाद तूने ही
रेतीली रखी थी,

नसीबों की लकीरें भी हमारे हक़
में भला क्या आतीं,

कि तक़दीर की वो स्याही भी तूने
ही नीली रखी थी,

उम्मीदों के सभी गुलशन सुलग
कर राख हो बैठे,

मगर यादों की इक टहनी अभी
तक मैंने गीली रखी थी,

मैं कैसे कैद रखता उस परिंदे
को भला ज़ख्मी,

जिसने उड़ने की अपनी ज़िद
ज़रा ज़हरीली रखी थी…🔥
╭─❀💔༻ 
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♦❙❙➛ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी•❙❙♦
#LoVeAaShiQ_SinGh
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loveguruaashiq.661810

પ્રસ્તુત પદ "પ્રત્યક્ષ દાદા ભગવાનની સાક્ષીએ" દ્વારા કેવળજ્ઞાની અરિહંત પ્રભુ શ્રી સીમંધર સ્વામી જે વર્તમાને મહાવિદેહ ક્ષેત્રમાં વિચરે છે, એવા હાજરાહજૂર તીર્થંકર ભગવાનને અત્યંત ભક્તિપૂર્વક નમસ્કાર કરી એમની ભજના કરીએ.

Watch here: https://youtu.be/jGpjui04bRA

#devotionalmusic #devotionalsongs #devotional #bhakti #DadaBhagwanFoundation

dadabhagwan1150

*नकली या असली गुरु का अर्थ*

सत्य धर्म का अर्थ है — हित, श्रेष्ठ, प्रथम।
सब्र, विराट, सबसे ऊँचा — वह आकाश तत्व।

ज्ञान स्वयं आकाश तत्व है।
चार तत्व (वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी)
सूक्ष्म और विराट होते हुए भी सीमित हैं,
लेकिन आकाश अनंत है।

वह ज्ञान-तत्व ही गुरु है।
वही ब्रह्मा है, वही विष्णु है, वही महेश है।

इसलिए गुरु किसी व्यक्ति में बँधा नहीं होता,
न किसी देह में, न किसी विदेश में।
गुरु वह आकाशीय वेदना है —
क्योंकि शून्य (0) के बाद पहले आकाश बना,
फिर चार तत्व बने।

आकाश का क्षेत्र विराट है।
अंततः वायु, जल, अग्नि —
सब जड़ हैं,
सब अपनी-अपनी सीमा में खड़े हैं।

लेकिन ज्ञात गुरु केवल एक है — आकाश।
इसीलिए आकाश-तत्व, ज्ञान-तत्व की वंदना
तीनों में समान कही गई है:

ब्रह्मा गुरु है,
विष्णु गुरु है,
महेश गुरु है —
सर्वदेव गुरु है।

आकाश तत्व देव नहीं है — गुरु है।
सबसे ऊपर है।

सूर्य ऊँचा है,
लेकिन सूर्य भी आकाश में स्थित है।
इसलिए गुरु सूर्य से ऊपर कहा गया है।

गुरु की शरण में झुकने का अर्थ
किसी व्यक्ति के चरणों में झुकना नहीं,
बल्कि सूर्य का आकाश के सामने झुकना है —
क्योंकि सूर्य भी अंततः आकाश पर टिका है।

जब शास्त्रों और लेखों में
आकाश को गुरु घोषित किया गया,
तब से मेरा क्रोध उठता है
उन पर जो कहते हैं —
“हम गुरु हैं।”

तुम अभी अपने शरीर की साधारण क्रिया भी
नहीं समझते,
और आकाश की व्याख्या करने चले हो —
यही मेरा विरोध है।

क्योंकि जो कहता है
“मैं दृष्टा हूँ”,
वही मेरा विरोधी है।

मेरी कुंडली में लिखा गया —
“तुम गुरु-विरोधी हो।”
यह सुनकर मुझे दुःख हुआ,
क्योंकि मैं स्वयं को अज्ञानी मानता हूँ।

लेकिन जब विज्ञान और वेदान्त समझा,
तब यह विरोध
पुण्य जैसा श्रेष्ठ दिखाई दिया।

दुनिया कहती है —
“तुम धर्म-विरोधी हो।”
लेकिन मेरा प्रश्न है —
धर्म क्या है?

मुझे सिखाया गया कि
व्यक्ति गुरु नहीं होता।
कोई व्यक्ति धर्म नहीं होता।
धर्म समझ है, सांझा ज्ञान है।

जब ज्ञान आकाश है,
और आकाश गुरु है,
तो फिर यह पाखंडी गुरु कौन हैं?

गुरु बनना एक खेल बन गया है।
ऋषि बनना,
और आकाश की तरह होने का
नाटक करना।

सूर्य अस्त होता है,
आकाश कभी अस्त नहीं होता।
इसीलिए वह
रज, तम, सत —
तीनों का पालन करता है,
जन्म का सहारा है।

वह सबसे विराट गुरु है।
इतनी बड़ी उपलब्धि होते हुए भी
यह संसार गधे-क्षेत्र बन गया है,
जहाँ हर कोई गुरु बना खड़ा है।

मैं कहता हूँ —
नकली गुरु ही धर्म, संसार और संस्कृति का विनाश हैं।
ये आज के रावण हैं।

नकली धर्म,
नकली ज्ञान,
नकली मुखौटे पहने हुए।

यह मेरा किसी व्यक्ति के विरुद्ध नहीं है,
न किसी एक धर्म के विरुद्ध।

मेरा विरोध केवल
उन नकली गुरुओं से है
जो कहते हैं —
“हम धर्म-रक्षक हैं।”

ये बड़े-बड़े शब्द बोलने वाले
असल में पापी हैं।
ये वास्तविक असुर हैं।

ये गुरु नहीं हैं।
गुरु तो सब कुछ है।

आज तो भिखारी भी
बिज़नेस बना कर
खुद को गुरु कहने लगे हैं।

आकाश कभी नहीं कहता —
“मैं आकाश हूँ,
मैं श्रेष्ठ हूँ।”

क्योंकि आकाश
सबको दिखाई देता है।
बच्चे को भी, वृद्ध को भी।
सब जानते हैं आकाश क्या है।

लेकिन ये पाखंडी कहते हैं —
“हम आकाश हैं,
हमारा ज्ञान लो,
हमारी शरण आओ,
हमारे संग रहो।”

आज उनके संग का परिणाम
सब देख रहे हैं।

क्या यह संग आकाश जैसा है?
क्या यहाँ विस्तार है,
या अंधकार?

यदि आकाश धरती पर खड़ा हो जाए,
तो व्यवस्था उलट जाती है।
वास्तव में सब आकाश पर टिके हैं,
लेकिन यहाँ धृति-रहित व्यक्ति
गुरु बनकर खड़े हैं।

फिर भी अंधकार है — क्यों?

आकाश एक है।
ग्रह और तारे अनेक हैं।

तो ये इतने सारे “अक्ष”
कहाँ से पैदा हो गए?

अपने गुरु से पूछो।
प्रश्न करना पाप नहीं है।

सच बस इतना है —
जितने नकली हैं,
उतने ही
तुम्हारे सामने खड़े हैं।

𝕍𝕖𝕕𝕒𝕟𝕥𝕒 𝟚.𝟘 𝔸 𝕊𝕡𝕚𝕣𝕚𝕥𝕦𝕒𝕝 ℝ𝕖𝕧𝕠𝕝𝕦𝕥𝕚𝕠𝕟 𝕗𝕠𝕣 𝕥𝕙𝕖 𝕎𝕠𝕣𝕝𝕕 · संसार के लिए आध्यात्मिक क्रांति — अज्ञात अज्ञानी

1️⃣ वेदान्त का विषय क्या है? — व्यक्ति या तत्व?

📜 ब्रह्मसूत्र 1.1.2

> “जिज्ञासा ब्रह्मणः”

➡️ वेदान्त की जिज्ञासा किसी व्यक्ति की नहीं,
➡️ ब्रह्म (तत्व) की है।

तुम्हारा लेख भी व्यक्ति-गुरु को हटाकर
तत्व (आकाश/ब्रह्म/ज्ञान) को गुरु मानता है —
यह सीधा ब्रह्मसूत्र के अनुरूप है।

---

2️⃣ आकाश = ब्रह्म का प्रतीक (उपनिषद प्रमाण)

📜 छान्दोग्य उपनिषद 1.9.1

> “आकाशो वै नामरूपयोर्निर्वहिता”

➡️ नाम-रूप (संपूर्ण संसार)
आकाश में स्थित हैं।

लिखा:

> “सब आकाश पर टिके हैं”

✔️ शत-प्रतिशत उपनिषद-सम्मत।

---

📜 तैत्तिरीय उपनिषद 2.1

> “आकाशाद्वायुः…”

➡️ आकाश पहले,
➡️ फिर वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी।

तुम्हारा कथन:

> “चार तत्व सीमित हैं, आकाश अनंत है”

✔️ यह सृष्टि-क्रम का शुद्ध वेदान्त है।

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3️⃣ गुरु = ज्ञान, न कि देह (स्पष्ट उपनिषद)

📜 मुण्डक उपनिषद 1.1.3

> “तद्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत्”

➡️ यहाँ गुरु का अर्थ
विज्ञान (तत्वज्ञान) है,
न कि शरीर।

वेदान्त 2.0लेख:

> “गुरु व्यक्ति नहीं, ज्ञान है, आकाश है”

✔️ पूर्ण सहमति।

---

4️⃣ ब्रह्मा-विष्णु-महेश = क्रिया, व्यक्ति नहीं

📜 श्वेताश्वतर उपनिषद 4.10

> “मायां तु प्रकृतिं विद्यान्…”

➡️ सृजन-पालन-लय
तत्वीय प्रक्रियाएँ हैं।

तवेदांत 2.0कथन:

> “ब्रह्मा गुरु है, विष्णु गुरु है, महेश गुरु है — तत्व रूप में”

✔️ यह वेदान्त का ही तात्त्विक अर्थ है,
पुराणिक व्यक्तिकरण नहीं।

---

5️⃣ सूर्य < आकाश (वेद प्रमाण)

📜 ऋग्वेद 1.164.6

> “आकाशे सुपर्णा…”

➡️ सूर्य, चन्द्र, तारे
आकाश में स्थित हैं।

वेदान्त 2.0 कथन:

> “सूर्य आकाश पर टिका है, इसलिए गुरु से नीचे है”

✔️ वैदिक दृष्टि से सही।

---

6️⃣ व्यक्ति-गुरु का खंडन — स्वयं गीता करती है

📜 भगवद्गीता 7.24

> “अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः”

➡️ जो अव्यक्त (ब्रह्म) को
व्यक्ति मान ले —
वह अबुद्ध है।

तुम्हारा लेख:

> “व्यक्ति गुरु नहीं हो सकता”

✔️ गीता-सम्मत।

---

7️⃣ “मैं गुरु हूँ” — यह स्वयं वेदान्त-विरोध है

📜 बृहदारण्यक उपनिषद 3.9.26

> “नेति नेति”

➡️ ब्रह्म किसी भी दावे को नकारता है।

तुम्हारा कथन:

> “जो कहे ‘मैं गुरु हूँ’ वही पाखंडी है”

✔️ यह नेति-नेति की सीधी परिणति है।

---

8️⃣ तो फिर विरोध क्यों होता है?

क्योंकि—

📌 वेदान्त धर्म नहीं तोड़ता,
📌 वह व्यवसाय तोड़ता है।

📌 वह व्यक्ति-पूजा नहीं करता,
📌 वह अज्ञान की सत्ता तोड़ता है।

इसलिए पाखंड डरता है।

---

🔚 अंतिम शास्त्रीय निर्णय

वेदान्त 2.0 —

✔️ वेद-सम्मत
✔️ उपनिषद-सम्मत
✔️ ब्रह्मसूत्र-सम्मत
✔️ गीता-सम्मत

❌ केवल पुरोहित-तंत्र के विरुद्ध
❌ केवल नकली गुरु-व्यवस्था के विरुद्ध

---

अंतिम वाक्य (शास्त्रीय निष्कर्ष)

यदि कोई इस लेख को अवेदान्तिक कहता है,
तो वह वेदान्त नहीं,
अपनी दुकान बचा रहा है।

✧ वेदान्त 2.0 ✧
— अज्ञात अज्ञान

bhutaji

🦋...𝕊𝕦ℕ𝕠 ┤_★__
रफ़्ता- रफ़्ता करके दुनिया- दारी
            सीखली हमने,

वरना हम भी कभी, झूठी क़समें
खाने वालों को सच्चा मान लिया
                करते थे,

ग़म को भी अब मुस्कुरा कर पी
        लिया, आदत सी है,

पहले-पहले हर जुदाई पर बहुत
        रोना लिया करते थे,

अब नहीं बहलाते हम दिल को
        किसी मीठी बात से,

इक ज़माना था, जब हर फ़र्ज़
    को अपना लिया करते थे,

अब पराया हो गया है, हाल-ए-
         दिल जिससे कहूँ,

इक वो दौर था जब हर अजनबी
    से दिल लगा लिया करते थे,

फेंक दी हैं अब वो सब, तस्वीरें
             पुरानी दोस्तो,

जिनमें हम हर राहबर को अपना
       रहनुमा लिया करते थे,

जानते हैं अब, हर  इक चेहरे  के
             पीछे के सबब,

जब कि  पहले  हर  नक़ाब को
सादगी समझ लिया करते थे,

ज़ख्मी, ये तजुर्बा-ए-उम्र है, जो
              तुझको मिला,

पहले तो हर दर्द को भी दिल की
दवा मान लिया करते थे…🥀😊

#𝗴𝕠𝕠𝗱_ Ⓜ𝗼𝗥𝗻𝕚𝗡𝕘__💐❤️
╭─❀💔༻ 
╨──────────━❥
♦❙❙➛ज़ख़्मी-ऐ-ज़ुबानी•❙❙♦
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loveguruaashiq.661810