Most popular trending quotes in Hindi, Gujarati , English

World's trending and most popular quotes by the most inspiring quote writers is here on BitesApp, you can become part of this millions of author community by writing your quotes here and reaching to the millions of the users across the world.

New bites

✧ वेदांत 2.0 — चिकित्सा का अंतिम न्याय ✧

तीन प्रकार की चिकित्सा

पद्धति कहाँ काम करती है? क्या देखती है? परिणाम

एलोपैथी शरीर जीवाणु, वायरस, लक्षण अस्थायी राहत, दुष्प्रभाव, नया रोग
होम्योपैथी सूक्ष्म ऊर्जा आघात, मानसिक-ऊर्जा चोट कारण की शुद्धि
आयुर्वेद तीन दोष / प्रकृति सत-रज-तम / वात-पित्त-कफ संतुलन → रोग का अंत



---

✦ विज्ञान क्या देखता है?

“रोग क्यों हुआ?” नहीं
बल्कि
“अभी क्या लक्षण दिख रहे हैं?”

इसलिए वह जीवाणु से लड़ता है।
पर जीवाणु पैदा किसके कारण हुए?
यह कभी नहीं पूछता।

> जीवाणु = परिणाम
जीवनशैली = कारण



कारण को न छूकर कौन-सा इलाज पूरा हुआ?


---

✦ आयुर्वेद और होम्योपैथी क्या समझते हैं?

दोनों एक ही विज्ञान पर आधारित:

> रोग = ऊर्जा असंतुलन
इलाज = ऊर्जा का संतुलन



Ayurveda →
वात, पित्त, कफ (ऊर्जा प्रवाह की 3 दिशाएँ)

Homeopathy →
आघात (ऊर्जा को लगा सूक्ष्म झटका)

दोनों कहते हैं:

> अगर ऊर्जा ठीक है →
शरीर स्वयं ठीक हो जाएगा।




---

✦ एलोपैथी के दुष्परिणाम क्यों?

क्योंकि:

• लक्षण दबा देता है
• रोग जड़ में और गहरा बैठ जाता है
• रसायन शरीर के तंत्र को तोड़ते हैं
• अगले रोग की सम्भावना बढ़ती है

वैज्ञानिक स्वयं कहते हैं:

कई दवाएँ कैंसर-जनक हैं
(फिर भी बाजार जारी है)

क्यों?

क्योंकि —
बीमारी जितनी बढ़ेगी
व्यवसाय उतना बड़ा होगा।


---

बिना जीवन जीना —

सबसे बड़ा रोग

एलोपैथी →
“ठीक कर दूँगा, तुम बस दबाओ!”

वेदांत 2.0 →
“जीओ…
तुम्हारा शरीर खुद ठीक कर देगा।”


---

वेदांत 2.0 का स्पष्ट निर्णय

1️⃣ एलोपैथी = परिणाम पर हमला
2️⃣ आयुर्वेद + होम्योपैथी = कारण पर उपचार
3️⃣ वेदांत 2.0 = जीवन में संतुलन → रोग शून्य


---

आख़िरी सत्य जिस पर दुनिया खामोश है:

> रोग = स्वयं नहीं जीने की सज़ा है
इलाज = स्वयं होने की आज़ादी है




---

अब एक वाक्य में तुम्हारे दर्शन का सार

> “जहाँ जीवन नहीं जिया — वहाँ रोग पैदा हुआ।
जहाँ जीवन फिर जगा — वहाँ रोग गिर गया।”



यही
वेदांत 2.0 का चिकित्सा-सूत्र है।

bhutaji

“नाते

तुझे माझे नाते जणु गवताचे पाते
हिरवे हिरवे गार ..
आणी” स्वच्छंदी” फार .!!
तुझे माझे नाते
जणु फुलाचा दरवळ
पसरे परिमळ चोहीकडे !!
तुझे माझे नाते
साऱ्या जगाला दाविता
वाढतो ग “मान “मिरविता “!!
तुझे माझे नाते
फक्त तुझ्या माझ्या साठी
कशाला सांगाव्या जनी त्यांच्या “गोष्टी “

...........वृषाली ..

jayvrishaligmailcom

Good morning friends have a great day

kattupayas.101947

तुझे तुझ जैसे से,
मुझ जैसा इश्क हो...

🌸

kishorshrimali4376

ઠંડી છે...શોધી રહી છું.. તાપણું 🔥
કોઇ તો મળે આટલા માં આપણું 🤌🏻

shabdo

संपूर्ण आध्यात्मिक महाकाव्य — पूर्ण दृष्टा विज्ञान

वेदांत 2.0 ✧

आपको क्या करना है?
कुछ भी नहीं।
सिर्फ समझना है।
देखना है।
जीना है।

यहाँ कोई धर्म, कोई विश्वास,
कोई कठोर साधना, मंत्र, तंत्र,
त्याग या तपस्या की आवश्यकता नहीं।

न गुरु की ज़रूरत

न भगवान की मजबूरी

न मार्ग की गुलामी

जीवन स्वयं गुरु है।

---

यह क्या है?

वेदांत 2.0 —
एक जीवित विज्ञान है।
ऊर्जा और चेतना का
सटीक, प्रत्यक्ष, अनुभवजन्य विज्ञान।

✔ शुद्ध आध्यात्म
✔ शुद्ध विज्ञान
✔ शुद्ध मनोविज्ञान
✔ शुद्ध अनुभव

कोई पाखंड नहीं।
कोई डर नहीं।
कोई भ्रम नहीं।

---

क्यों यह अंतिम है?

क्योंकि यह दोनों सत्य को जोड़ता है:

वेद — सूक्ष्म का विज्ञान
विज्ञान — दृश्य का सत्य

वेदांत 2.0
वेद, उपनिषद और गीता को
अनुभव में प्रमाणित करता है —

और आधुनिक विज्ञान को
अस्तित्व में स्थापित करता है।

> यहाँ आध्यात्मिकता = प्रमाण
विज्ञान = अनुभव की भाषा

---

परिणाम क्या होगा?

वेदांत 2.0
आपको:

• आनंद देगा
• शांति देगा
• प्रेम देगा
• सृजन देगा
• बुद्धि नहीं — दृष्टि देगा

यह जीवन को
निखार देता है।
यह मन, समाज, धर्म के
सभी दुख, डर, भ्रम तोड़ देता है।

धन, पद, साधन —
सब अतिरिक्त हो जाते हैं।

जीवन —
मुख्य हो जाता है।

---

वेदांत 2.0 की एक पंक्ति

> “जीवन ही साधना है —
और होश में जीना ही परम सत्य।”

---

यह दर्शन नहीं —

यह जीवन का विज्ञान है

यह
किसी पंथ का रास्ता नहीं
किसी धर्म की प्रतिस्पर्धा नहीं
किसी गुरु का बाजार नहीं

यह पूर्ण स्वतंत्रता है।
व्यक्ति की —
ऊर्जा की —
अस्तित्व की —

---

वेदांत 2.0 का ध्येय

> हर मनुष्य को
स्वयं का विज्ञान देना
ताकि वह
किसी का भक्त नहीं —
स्वयं साक्षी बन जाए।

bhutaji

✧ वेदांत 2.0 — अध्याय 8 ✧

सत्य से सबसे ज़्यादा डर किसे लगता है?

सत्य धार्मिक को नहीं भाता —
क्योंकि सत्य आते ही
उनका बनाया हुआ झूठ
उनकी कुर्सी
उनका व्यवसाय
सब समाप्त हो जाता है।

विज्ञान जब सत्य लाता है —
तो दुनिया बदलती है।

धर्म जब “विश्वास” लाता है —
तो वही दुनिया
जड़ और भयभीत बनी रहती है।

---

धार्मिकता = स्वप्न

वेदांत 2.0 = अनुभव

धार्मिकता कहती है:
“मानो, बिना पूछे मानो!”

वेदांत 2.0 कहता है:
“देखो, अनुभव करो —
जो झूठ है वह अपने-आप गिर जाएगा।”

इसलिए:

धार्मिक व्यक्ति सत्य देखते ही डरता है
वैज्ञानिक व्यक्ति सत्य देखते ही खिलता है

---

सत्य किसका शत्रु है?

सत्य → अहंकार का शत्रु
सत्य → पाखंड का शत्रु
सत्य → व्यवसाय का शत्रु

धर्म ने
जीवन का सौदा कर दिया —
मोक्ष, पुण्य, भगवान, चमत्कार बेच दिए।

जबकि अनुभव में मिलता है:
• आनंद — अभी
• शांति — अभी
• प्रेम — अभी
• जीवन — अभी

---

धर्म का खेल कैसे चलता है?

धर्म:
“अभी नहीं — बाद में मिलेगा।”
यही भरोसा,
यही डर,
यही स्वप्न —
धार्मिक बाज़ार की पूँजी है।

और जिसने अभी का स्वाद चख लिया —
वह किसी बाज़ार में नहीं टिकता।

---

सत्य — मृत्यु किसकी?

> सत्य आने पर
व्यक्ति नहीं —
व्यक्ति का झूठ मरता है।

धार्मिक इसे अपनी मृत्यु समझ लेते हैं।
क्योंकि उनका अस्तित्व
झूठ की ही नींव पर टिका होता है।

वेदांत 2.0 कहता है:
“अहम् मरता है — अस्तित्व प्रकट होता है।”

---

क्यों वैज्ञानिक इसे स्वीकार करेगा?

क्योंकि:

✓ यह अनुभव है
✓ यह मनोविज्ञान है
✓ यह ऊर्जा-विज्ञान है
✓ यह पुनरुत्थान है
✓ यह प्रत्यक्ष प्रमाण है

विज्ञान सत्य की भाषा समझता है —
धार्मिक “मेरा” भगवान।

---

स्त्री इसे तुरंत समझ जाती है

स्त्री
हृदय में जन्मती है
इसलिए उसे सत्य को
सोचना नहीं पड़ता —
वह महसूस कर लेती है।

धार्मिक पुरुष
अहंकार में जन्मता है
इसलिए उसे सत्य
भय देता है।

---

अंतिम सार

> जहाँ सत्य है — वहाँ कोई धर्म नहीं
जहाँ धर्म है — वहाँ सत्य अक्सर अनुपस्थित

वेदांत 2.0
धर्म को नहीं गिराता,
धर्म के भीतर जीवन को जगाता है।

---

एक सीधी घोषणा

धार्मिक कहेगा:
“यह नास्तिकता है!”

वैज्ञानिक कहेगा:
“यह परम-आस्तिकता है!”

और अनुभव कहेगा:
“यह सत्य है।”

---

वेदांत 2.0 का महावाक्य

> जिस सत्य से धर्म डरता है —
उसी सत्य की रक्षा विज्ञान करता है।

bhutaji

कर्मही महान है। 🌹🙏🌹

drbhattdamayntih1903

भारतीय संविधान दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।🌹🙏🌹

drbhattdamayntih1903

वेदांत 2.0 — स्त्री-पुरुष का मौलिक धर्म ✧
पुरूष = यात्रा

स्त्री = घर (केंद्र)

धर्म, कर्मकांड, साधना, उपाय —
ये सब पुरुष के लिए हैं।
क्योंकि पुरुष जर्नी है —
उसे मूलाधार से हृदय तक
चढ़ते हुए सीखना पड़ता है —

1️⃣ मूलाधार — जीवन
2️⃣ स्वाधिष्ठान — वासना
3️⃣ मणिपुर — शक्ति
4️⃣ अनाहत — प्रेम

पुरुष सीखकर पहुँचता है।
प्रेम, करुणा, ममता —
पुरुष में उगाने पड़ते हैं।

इसलिए पुरुष का धर्म —
विकास है
ऊपर उठना है
अहंकार पिघलाना है
हृदय तक पहुँच जाना है

उससे पहले उसका प्रेम —
अभिनय है।
शब्दों की नकल है।
बुद्धि का ड्रामा है।

इसी बुद्धिगत अभिनय को
दुनिया धर्म समझ बैठी है।
यही धार्मिक व्यापार है।

---

स्त्री = पूर्ण, जन्म से

उसकी कोई साधना नहीं
क्योंकि:

> स्त्री वहीं जन्म लेती है
जहाँ पुरुष को पहुँचने में जन्म-जन्म लग जाते हैं

स्त्री पहले ही:

✔ हृदय में होती है
✔ प्रेम, करुणा, ममता उसका स्वभाव है
✔ वह “केंद्र” पर खड़ी है
✔ उसे “बाहरी शिक्षा” की जरूरत नहीं

उसकी एक ही आवश्यकता है —

> पुरुष की आँखों में
प्रमाण कि “तुम हो”

बाकी सब
उसे जन्म से मिला है।

---

आधुनिक बीमारी

स्त्री पुरुष की नकल करने लगी
पुरुष स्त्री की संवेदना खोने लगा

स्त्री —
अपनी मौलिकता छोड़कर
प्रतिस्पर्धी बन गई
जिसे दुनिया “फैशन”, “फ़्रीडम” कहती है —
असल में अपनी मूल स्त्रीत्व से पलायन है।

पुरुष —
आक्रामक और बुद्धिगत हो गया
जिसे “स्मार्ट”, “मॉडर्न” कहते हैं —
असल में हृदयहीनता है।

दोनों अपनी जड़ से कट गए।

---

धर्म क्या है?

स्त्री = केंद्र
पुरुष = परिधि

पुरुष का धर्म है —
परिधि से केंद्र तक पहुँचना

स्त्री का धर्म है —
केंद्र को स्थिर रखना

पुरुष का उठना आध्यात्मिकता है
स्त्री का होना ईश्वर है

---

अंतिम सत्य

> स्त्री और पुरुष —
विपरीत नहीं
परिपूर्ण हैं।

स्त्री ऊर्जा है
पुरुष दिशा है

स्त्री शक्ति है
पुरुष आँख है

एक दूसरे के बिना
दोनों अधूरे
दोनों पीड़ा

---

वेदांत 2.0 का स्त्री-पुरुष सूत्र

1️⃣ पुरुष साधना करता है → हृदय तक पहुँचने के लिए
2️⃣ स्त्री साधना नहीं करती → वह पहले ही हृदय है
3️⃣ पुरुष का प्रेम बनता है → स्त्री का प्रेम जन्मता है
4️⃣ पुरुष प्रमाण खोजता है → स्त्री प्रमाण देती है
5️⃣ धर्म = पुरुष की यात्रा + स्त्री का घर

---

निष्कर्ष

> जहाँ स्त्री अपने केंद्र में रहती है —
वही मंदिर है।
जहाँ पुरुष उसी केंद्र तक पहुँच ले —
वही समाधि है।

यही
स्त्री-पुरुष का वास्तविक धर्म है —
वेदांत 2.0 का
जीवंत विज्ञान।

अज्ञात अज्ञानी

bhutaji

You felt like the warmest part of the sunset…
that moment where everything turns soft,
quiet, peaceful,
and somehow, perfectly beautiful.
🌅✨❤️
If you love gentle romantic moments like this,
my novel “You’re My Favorite Rhythm” carries the same warmth —
a soft love story filled with longing, healing, and quiet emotions.
📖✨ Available now on Amazon.
https://amzn.in/d/8dkQf0J

meps8819

true 🥀...

krishnatadvi838176

नज़र से नज़र मिलाकर तुम कुछ ऐसी नज़र लगा गए ,
ख़ुद नज़र आए नहीं और हम सबकी नज़र में आ गए ।
जब मिली फिर से ये कमबख़्त नज़रें हमारी तो फिर सब नज़रअंदाज़ हो गए ।

usha.jarwal

coming soon

krishnadebnath709104

सच तो यह है कि समय अपने बीतने के लिए किसी की भी स्वीकृति की प्रतीक्षा नहीं करता!

mritunjaykmar

સાચા #દોસ્તને સાચવો.....
♥️♥️♥️♥️♥️♥️
તું આવવાની છે તે સાંભળી હૈયું હાથમાં ના રહ્યું. કેટલા વરસે તું આવી રહી છે!એક દાયકો વીતી ગયો.કદાચ મને એમ હતું કે દિપાલી ભૂલી ગઈ છે.પરંતુ તારા આવવાના એક કૉલે મારી બધીજ નિરાશાઓ ખંખેરી નાખી.
દીપક અતીતની યાદોમાં સ્વગત બોલ્યે જતો હતો.દિપાલી ! તને ખબર છે? આપણે બેઉ એક વખત રસ્તામાં બાઈક પર જતાં હતાં ત્યારે એક નાનકડું મંદિર આવ્યું.આરસનો ચોખ્ખો ઓટલો અને મંદિરની ફરતે લીલી વનરાજીથી વિંટડાયેલી વિવિધ લતાઓમાં વિવિધ ફૂલો જોઈ ઘડીભર તો તું નાચી ઊઠી હતી.તારી ભંગીમાઓ જોતાં મનોમન હું ખુશ થતો હતો.આશા હતી કે આપણે સાથે લગ્ન કરી જીવશું, સાથે મરશું. ખૂબ રખડ્યાં. એ દિવસોમાં તારા વગર હું ઘડીકેય રહી ના શકતો. તું પણ મને સતત ઝંખતી. અવનવા સ્થળે આપણે બેઉ બાઈક પર ઉપડી જતાં.. આહહહ કેવી જિંદગી હતી?અને આજે તું વરસો પછી મને જ મળવા આવી રહી છે! કેમ આવતી હશે? હું તો પરણી ગયો છું તે તો એને ખ્યાલ જ છે. મેં એને કંકોતરી લખી હતી.તેણે તો મને જાણ કર્યાં વગર લગ્ન કરી લીધાં હતાં. ફોન પર મેં પૂછ્યું તો કે હું એકલી જ આવું છું. શું કામ પડ્યું હશે મારું? અચાનક રૂબરૂ આવવાનું કારણ? મેં એને પૂછ્યું પણ નહિ કે કોણ કોણ આવો છો આવવાનું કારણ એવું કોઈ જ પૂછ્યા વગર અતિ ઉત્સાહમાં હા તો પાડી જ દીધી છે.મનમાં શંકા - કુશંકાનાં વાદળોમાં તે ચંદ્ર જેમ ઢંકાઈ ગયો.ઓરડામાં અંધારું થતાં દિપકે બત્તી કરી.ત્યારે ખબર પડી કે સંધ્યા થઇ ગઈ છે.તે નજીકના શહેરથી લોકલ બસમાં સાત વાગે ગામે ઉતરશે.બસ સ્ટેન્ડ પર મને રિસીવ કરવા આવજે.દિપાલી ફોન પરના છેલ્લા શબ્દો યાદ આવતાં તે વિચારમંથન પડતું મુકી ઝટ બાઇકને કીક મારી તે બસ સ્ટૉપ પર પહોંચ્યો.બસ હજુ આવી નહોતી એટલે હાશકારો થયો.બાઈક સ્ટેન્ડપ કરી તેની વાટ જોવા માંડ્યો.ખૂબ મંથનને અંતે દિપાલીનું આગમન થયું.દસ વરસે કેમ આવવાનું થયું હશે તેવા વિચાર તંદ્રામાં પાછો ખોવાઈ ગયો.
નિર્ધારિત સમયે બસ સ્ટૉપ પર આવી.ઝટ બાઈક પરથી ઉતરી બસના પગાથીએ પહોંચીને દીપાલીની ઉતરવાની ઘડી જોતો રહ્યો.દીપકનું મન અધીરું બન્યું.દિપાલી ભરેખમ સામાન બેઉ હાથમાં મોટી બેગ લઈને જેવી પગથિયે આવી એટલે દીપકે પહેલાં તો તેના ચહેરા સામે ક્ષણિક જોઈને હાથમાં ભારેખમ થેલો લઇને નીચે મુકી બીજો સામાન ઉતારવામાં મદદે લાગ્યો.છેલ્લે બસના પગથિયે દિપાલીનો હાથ પકડી ઉતારી.સામાન બાઈક પાસે લઇ પછી દિપાલી સામે જેવો આંખ મિલાવવા જાય છે ત્યાં દિપાલી ખુદ બે હાથ ફેલાવીને હ્રદયસરસી ભેટી પડી.હરખનાં છે કે મુશ્કેલીના બે આસું છે,તે દિપક સમજી ના શક્યો.ઘડી બે ઘડી બાદ દિપાલીએ હાથ ખુલ્લા કરી પોતાની આંખમાં આવેલાં આસું પોંછી બાઈક પર સામાન સાથે બેસી ગઈ અને દીપક પોતાના ઘેર લાવ્યો.હજુ પણ બેઉ ચૂપ હતાં.સવાલ ઘણા ઘુમરાતા હતા પરંતુ દીપક એટલા માટે ચૂપ હતો કે દીપાલી ફ્રેશ થાય પછી જ વાત.કેમકે દિપાલીના સામાનથી લાગતુંતું કે રોકવા આવી હશે.
દીપાલી બાથરૂમમાં ફ્રેશ થઇ આવી.કપડાં બદલી ઘરના એક કમરામાં તેનો સામાન દિપકે મુકી દીધો હતો.આંગળી ચીંધી દીપાલીને રૂમ બતાવી તે પલંગ પર બેઉ બેઠાં.
. તેના રૂમમાં બીજું કોઈ હતું નહિ.એટલે જાતે પાણી કોફી બનાવી દીપાલી ને આપી.દીપક તેના ગામથી દૂર એક મહાશાળામાં તે પ્રોફેસર હતો.દીપાલી બોલી.. દીપક કેમ ઘરમાં કોઈ નથી? વાઈફ કયાં છે ? દીપક બોલ્યો... તારો કૉલ આવ્યો તેના બે કલાક પેલાં તેના પપ્પાને પિયર કોઈ અગત્યનું કામ પડ્યું એટલે ગઈ છે.પરંતુ તું ટેન્શન ના લે હું એને કૉલ કરી દઉં છું.કે તું આવી છે. દીપાલી બોલી.ઓકે! દીપક કૉલ કરી ને દીપાલીના આકસ્મિક આગમનની બાબત પૂછી... બોલ દીપાલી! તારું આમ આવવાનું આકસ્મિક કારણ? તે પણ તારા ભરેખમ બેગ સાથે....! ત્યાં દીપાલી બોલી... હું સાડી વેચવાનો ધંધો કરું છું.મારા પતિને કોઈ અન્ય જોડે લફરું હોઈ તે મને આ દસ વરસમાં કામવાળી સમજી નજીક તો ઠીક પરંતુ બોલાવતો પણ નહિ હતો.મેં આ સમયમાં ખૂબ સહન કર્યું.અસહ્ય ન થતાં મારે એ ઘરે થી નીકળવાની ફરજ પડી.પિયરમાં ભાઈ ભાભીના બેઠે રોટલા કયાં ખાઉં? છેવટે ઓશિયાળો રોટલો ખાઈ કોને ભારે પડું? માટે મેં એક ઓરડી ગામની અંદર ભાડે રાખી છે.હું એકલી રહું છું. શરૂઆતમાં ખૂબ એકલું લાગ્યું પરંતુ હવે એકલતા કોઠે પડી ગઈ છે.આપણી સાથે ભણતા તમામ મિત્રોમાં ફેરી કરતાં તારો નંબર મળ્યો ને કોન્ટેક કર્યો.મારા પતિ પાસે હું વરસોથી જતી નથી અને એણે મને આજ સુધી હું કયાં શું કરું છું, તે ખબર લીધી નથી.શું કરું પછી ત્યાં જઈ? હું હરખનો જાત મહેનતનો રોટલો ખાઈ દહાડા કાઢું છું.
. આટલું બોલતાં દીપક જાણે ફીલ્મ નો ઘડી ઘડી બદલાતો પ્રસંગ જોઈ દિ્ગમૂઢ બની દીપાલી સામે જોઈ રહ્યો.આંખમાં આંસુ સાથે સ્વસ્થ થઇ બોલ્યો.દીપાલી! તું થાકી છે.ટિફિન મેં મંગાવી લીધું છે.તું ભૂખી છે માટે જમી લે પછી નિરાંતે વાત કરીએ.
જમ્યા પછી દીપક બોલ્યો.. દીપાલી તારે આવી રીતે સાડી વેચવાની ફેરી નથી કરવી.મારી કોલેજમાં એક ક્લાર્કની જગ્યા છે.તારા માટે નોકરી અને રહેઠાણ બેઉ વ્યવસ્થા કરું છું.બીજું કંઈ ના વિચારીશ.. હું માત્ર તારો દોસ્ત છું. ભૂતકાળ જે હોય તે.મારી હૂંફ તને મળતી રહેશે.
તે રાતે દીપાલીની સર્વ વાતો સાંભળી દીપક ક્યારે ઊંઘી ગયો ખબર ના પડી.બીજી તરફ દીપાલી થાકેલી હતી.તે વિચાર કરતી કરતી ભગવાનને કહી રહી હતી ભગવાન! તેં મને મારો દોસ્ત પાછો મને મેળવી આપ્યો..અસ્તુ!
(#દોસ્તને તમારી સુખ દુઃખની વાતો શૅર કરતા રહો. જેને સાચો દોસ્ત મળ્યો છે,તે આ જગતનો સુખી માણસ છે.)
- સવદાનજી મકવાણા (વાત્ત્સલ્ય

savdanjimakwana3600

मनुष्य भाग नहीं रहा।
उसे भीतर उठती ऊर्जा धक्का देकर दौड़ा रही है।
जैसे आग ईंधन को चिंगारी दे —
तो ईंधन खुद नहीं जलता,
ऊर्जा जलाती है।

इसी तरह मनुष्य खुद गतिशील नहीं —
ऊर्जा उसे गतिमान करती है।

लेकिन ऊर्जा अंधी है।
उसके पास दिशा नहीं।
दिशा — वासना देती है।
वासना आँख है — ऊर्जा उसका बल।

जैसे घोड़े की आँख पर पट्टी बाँधकर
उसे दौड़ाया जाए —
घोड़ा भागेगा, पर दिशा गलत होगी।

आज मनुष्य इसी तरह दौड़ रहा है।
पता नहीं कहाँ…
क्यों…
किसलिए…

ऊर्जा का बहाव चल रहा है
पर दृष्टि नहीं।

---

आज का इंसान = मक्खी

एक मक्खी गंदगी पर बैठती है
हजार मक्खियाँ उसी गंदगी पर
भागती चली जाती हैं —
उसे अमृत समझकर।

तथाकथित बुद्धिजीवी
राजनीतिक, वैज्ञानिक, धार्मिक —
सभी इसी अंधे झुंड का हिस्सा हैं।

सफलता देंगे, स्वर्ग देंगे,
मोक्ष देंगे, स्वास्थ्य देंगे…
बस बेच रहे हैं
और ऊर्जा को गलत तरफ
और तेज़ धक्का दे रहे हैं।

---

ऊर्जा का नियम (अस्तित्व का विज्ञान)

ऊर्जा का स्वभाव है —
बहना, खर्च होना, गति देना
लेकिन
यदि उसका रूपांतरण हो जाए
तो वही ऊर्जा —
बिजली की तरह
अद्भुत शक्ति बन जाती है।

जैसे विज्ञान ने बिजली को
तरंगों में, प्रकाश में,
रॉकेटों में बदल दिया —
वैसे ही
आध्यात्मिकता का विज्ञान
ऊर्जा को चेतना में बदलता है।

इसे ही वासना रूपांतरण कहते हैं।
यही वास्तविक आध्यात्मिक विज्ञान है।

---

असली गरीबी क्या है?

ऊर्जा सबके भीतर बहुत है —
ज़रूरत से हजार गुना ज़्यादा।
लेकिन
दृष्टि — नहीं।
दिशा — नहीं।
जीवन जीने का विज्ञान — नहीं।

इसलिए साधन बढ़ते जाते हैं,
पर जीवन नहीं मिलता।

यह दुनिया —
साधन खोजने वालों का समाज है,
जीवन खोजने वालों का समाज नहीं।

---

असली धर्म क्या है?

धर्म → जीना सीखना
आध्यात्मिकता → ऊर्जा को दिशा देना

लेकिन धर्म और विज्ञान —
दोनों अभी
अंधेरे में भटक रहे हैं।

कोई भी नहीं कहता कि
“मुझे जीना है” सभी कहते हैं —
बड़ी चीजें पाना है
मोक्ष, ईश्वर, सिद्धि, सफलता…

पर
जीवन की कला सीखना ही मोक्ष है।
जीवन का बोध ही ईश्वर है।

---

आज का धार्मिक बाज़ार

आज सब बेचा जा रहा है:

○ साधना
○ कुंडलिनी
○ मंत्र
○ चक्र
○ स्वर्ग
○ पुण्य

और बेचने वाले?
खुद — अंधे।
और खरीदने वाले?
अंधे का सहारा लेकर
अंधेरे में गिरते हुए।

भीड़
तीर्थ
कुंभ
भव्य मंदिर
सब एक सपना उद्योग हैं।

यह सब
जीवन नहीं देता —
जीवन छीनता है।

---

निष्कर्ष

जीवन को जीने का विज्ञान चाहिए।
शास्त्र नहीं
कथा नहीं
व्यवहारिक, अनुभवजनित
ऊर्जा रूपांतरण का विज्ञान।

उसका नाम —
वेदांत 2.0 🌟

जहाँ जीवन स्वयं
शास्त्र बने।
जहाँ ऊर्जा स्वयं
चेतना बने।
जहाँ जीना ही
मईश्वर हो।

bhutaji

✧ जब धार्मिक खुद जीने लगे ✧

यदि धार्मिक खुद जीना सीख ले
तो:

• न मंच बने
• न संस्था खड़ी हो
• न गुरु का व्यापार हो
• न घंटालगिरी चले

क्योंकि जिस क्षण कोई जीने लगता है —
उसे चाहिए ही क्या?

○ दो रोटियाँ
○ तन ढकने को कपड़ा
○ और भीतर आनंद, प्रेम, शांति

बस इतना ही तो जीवन है।

---

लेकिन आज?

धर्म = व्यापार
मंच = मार्केट
गुरु = ब्रांड

भक्त = कस्टमर
और
मोक्ष = प्रोडक्ट

साधना = पैकेज
सेवा = पब्लिसिटी
धर्म = बिजनेस प्लान

यह जीवन नहीं,
यह उद्योग है।

---

असली गुरुत्व क्या है?

जिसके जीवन में
जीवन की कला हो जाती है —
लोग स्वयं खिंचकर आते हैं।

जैसे ओशो के समय —
कोई प्रचार नहीं, कोई निमंत्रण नहीं
फिर भी दुनिया पागल होकर पहुँच गई
क्योंकि वहाँ जीवन था
कथाएँ नहीं।

धर्म वही है —
जहाँ जीना सीखने मिलता है
पाना नहीं।

---

असली गुरु को क्या चाहिए?

उसे कुछ भी नहीं चाहिए।
क्योंकि:

○ जिसकी वासना रूपांतरित है
उसमें आनंद पूरा है

○ जिसे जीवन मिल गया
उसे साधन की लालसा नहीं

जैसे पुष्प —
“मधुमक्खी बुलाता नहीं”
फिर भी पूरा बाग उसके पास आता है।

भक्त खोजेगा नहीं —
भक्त खुद चलकर आएगा।

---

आज का सत्य

आज के धार्मिक, राजनीतिक, गुरु —
सब बेच रहे हैं:
आशा, स्वर्ग, सफलता, मोक्ष, सिद्धि…

और साधारण जनता
अधिक वासना और अंधकार में फँसी हुई —
उन्हें साधन चाहिए,
जीना नहीं।

लेकिन याद रखो:
जनता पापी नहीं — पवित्र है
सिर्फ उसकी ऊर्जा की दिशा गलत है।

---

सार

जहाँ धर्म जीने की कला देता है —
वह जीवित धर्म है।

जहाँ धर्म बेचने की दुकान बने —
वह मरा हुआ धर्म है।

bhutaji

वो दिन अब तक ना आया
तो आगे भी अब कभी नहीं आएगा !
💔🥀_______

hindbharat

ममता गिरीश त्रिवेदी की कविताएं

mamtatrivedi444291

Do you know that emotional agitation is very dangerous? One loses his consciousness during emotional agitation and so many karmas get bound.

To know more visit here: https://dbf.adalaj.org/xqjFCNpC

#angermanagement #angerissue #selfhelp #selfimprovement #DadaBhagwanFoundation

dadabhagwan1150

GOOD MORNING EVERYONE
🌻☕🌻

jighnasasolanki210025

એક આશ સાથે બાંધ્યા તમને, દિલનો દોર માની લીધો,
કે હવે નહીં રહે એકલતા, સંગાથ છોર માની લીધો.

તમારા પગલાં જ્યાં જ્યાં પડ્યા, ત્યાં સુગંધ વરસી ગઈ,
મેં ધૂળને પણ પવિત્ર માની, માથાનો મોર માની લીધો.

હતી કેટલી યે ખ્વાહિશોની ભીડ આ દિલમાં, પણ!
બસ, એક તમારું આવવું, જાણે બધો શોર માની લીધો.

સહેજમાં સ્મિત આપી ને નજરને મેં ઝુકાવી છે,
તમારી આંખોની ભાષાને મેં પ્રેમનો પોર માની લીધો.

જીવનના વણઝારમાં ક્યાંક તો અટકવું હતું,
તમે મળ્યા ને મઝિલનો કિનારો સરોવર માની લીધો.

આશ પૂરી થાય કે ન થાય, એની પરવા નથી હવે,
તમારો પડછાયો પામ્યો, એને જ સૌ ઠોર માની લીધો.
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

palewaleawantikagmail.com200557