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इंतजार करना बंद करो, क्योकिं सही समय कभी नही आता.…!!Follow the Raju Kumar Chaudhary official channel on WhatsApp: https://whatsapp.com/channel/0029Vb6nSzoDOQIXdQiMVl1U

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Stories of Sight — Trusted for Generations

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netrameyecentre

सुधार बनाम चेतना — एक दार्शनिक आलोचना ✧

✍🏻 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

प्रस्तावना
समाज में सुधार — चाहे वह शिक्षा, न्याय, धर्म, संगठन या जेल-प्रथा के रूप में हो — सदियों से चलता आया है।
हर युग ने अपनी तरह के उपाय गढ़े, यात्राएँ कीं, क्रांतियाँ छेड़ीं।
फिर भी प्रश्न वही ठहरा रहता है:
क्या वास्तव में कोई सुधार संभव है —
या यह केवल एक सूक्ष्म आत्म-वंचना है?

सुधार की सीमा
हर सुधार अंततः उसी जड़ता में लौट आता है,
जहाँ से वह भागना चाहता था।
पुराने नियम, नयी भाषा में दोहराए जाते हैं;
व्यवस्थाएँ चलती रहती हैं, पर भीतर से मर चुकी होती हैं।
कानून चाहे कितना मानवीय हो जाए,
उसकी आत्मा अक्सर अनुपस्थित रहती है।
सुधार के सारे प्रयास समाज के बाहरी ढांचे को छूते हैं,
भीतर की चेतना को नहीं।

चेतना की अनिवार्यता
सच्चा परिवर्तन वहाँ से शुरू होता है
जहाँ सुधार की मशीनरी समाप्त हो जाती है।
आत्मा का स्पर्श,
भीतर की रोशनी का अनुभव —
यहीं से नया समाज जन्म ले सकता है।
जब तक मनुष्य अपने ही भीतर
उस चेतना को नहीं पहचानता,
सारी योजनाएँ अधूरी और निस्सार रहेंगी।

सुधार: मिथक या मजबूरी
सुधार का विचार दिखने में क्रांतिकारी है,
पर उसके भीतर गहरा भ्रम छिपा है।
मरती हुई व्यवस्थाएँ, जड़ मानसिकता,
और यांत्रिक समाज —
इनसे किसी जीवंत परिवर्तन की अपेक्षा
मात्र आशा का व्यापार है।
सुधार के सारे प्रयोग बाहर से थोपे गए संवाद हैं;
भीतर कोई नदी नहीं बहती।

आध्यात्मिक विकल्प
एक ही संभावना बचती है — चेतना का विकास।
यह सुधार का विरोध नहीं,
बल्कि उसका उत्कर्ष है।
जागरूकता, आत्म-प्रश्न, और मौन की साधना;
विज्ञान की दृष्टि और उपनिषद की अनुभूति;
विवेक और प्रज्ञा का मिलन —
यही वह भूमि है जहाँ समाज पुनः जीवित हो सकता है।

> “प्रत्येक बाहरी व्यवस्था, चेतना-जागरण के बिना,
एक मृत घाटी बन जाती है।
यह सत्य पत्थर पर लिख देने जैसा अटल है।”

bhutaji

ममता गिरीश त्रिवेदी की कविताएं
कविता का शीर्षक है 🌹 जीवन की लगाम

mamtatrivedi444291

Do you know that the brain is just a machine; it is mechanical? Mind is the mind. The mind has its’ own existence.

Read more on: https://dbf.adalaj.org/BycaY31U

#facts #doyouknow #brain #mind #Spirituality #dadabhagwanfoundation

dadabhagwan1150

મને ખબર છે, પ્રેમ છે તો છે, બસ એ જ વાત રાખું છું,
હૃદયની આરસીમાં સદા તારી જ ઝલક રાખું છું.

નજરની ભાષા સૌને ક્યાં સમજાય છે, માનું છું,
છતાંયે આંખમાં તારા ભરોસાની શપથ રાખું છું.

​ગમે તેવાં ચઢાવ-ઉતાર આવે જિંદગીની રાહમાં,
પ્રેમના દીવાને હું અખંડ, અવિચલિત રાખું છું.

​તને મળવાની ઈચ્છામાં કદાચ રાતો જાય છે વિતી,
સવારની રાહમાં તારા જ સ્મરણની પલક રાખું છું.

દુનિયાની પરવા નથી, શું કહેશે આ જમાનો,
'પ્રેમ છે તો છે', કહીને આ સંબંધને અમરતુલ્ય રાખું છું.

palewaleawantikagmail.com200557

र्ण विज्ञान — जड़ से ब्रह्म तक ✧
(एक सूत्रग्रंथ)
🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷𝓲

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भूमिका

वर्ण व्यवस्था धर्म नहीं, ऊर्जा का शास्त्र थी।
वेद ने मनुष्य को शरीर से नहीं, चेतना के स्तरों से मापा।
जन्म नहीं, कर्म नहीं — स्थिति ही वर्ण थी।
वह व्यवस्था नहीं थी — वह आरोहण थी।
शूद्र से ब्रह्म तक —
यह कोई समाज की सीढ़ी नहीं,
यह आत्मा की यात्रा थी।

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✧ 1. शूद्र — भूमि की ऊर्जा ✧

शूद्र वह नहीं जो नीचा है,
वह है जो अभी भौतिकता में कार्यरत है।
जो मिट्टी से जुड़ा है,
जो श्रम में जीवन की धड़कन खोजता है।
उसका धर्म श्रम है,
क्योंकि वही उसे जड़ से जगाता है।
शूद्र का अपमान नहीं —
वह प्रकृति का पहला स्पंदन है।

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✧ 2. वैश्य — प्राण की ऊर्जा ✧

जब श्रम में चेतना जागती है,
तो मनुष्य लेन-देन, प्रवाह,
और संबंध के अर्थ को समझता है।
यह प्राणिक स्तर है — जहाँ जीवन घूमता है।
वैश्य का धर्म है संतुलन।
वह देता भी है, लेता भी है।
वह समझता है —
“सृष्टि देना और लेना — दोनों है।”

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✧ 3. क्षत्रिय — मन की ऊर्जा ✧

यहाँ ऊर्जा आग बनती है।
कर्तव्य, निर्णय, संरक्षण, और युद्ध —
यह सब मन के धर्म हैं।
क्षत्रिय भीतर का योद्धा है —
जो अपने भय से लड़ता है।
उसका धर्म है साहस,
क्योंकि बिना साहस कोई धर्म नहीं टिकता।
यह वह स्तर है जहाँ
“मैं कौन हूं?” की लड़ाई शुरू होती है।

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✧ 4. ब्राह्मण — बुद्धि और आत्मा की ऊर्जा ✧

यहाँ सब शांत है।
ना लेना, ना देना, ना लड़ना।
सिर्फ़ देखना।
ब्राह्मण का धर्म कर्म नहीं,
साक्षी भाव है।
वह जानता है — सृष्टि भी भीतर से चलती है।
वह ब्रह्म के निकट है,
क्योंकि उसने अपने भीतर के चारों तत्त्वों को
संतुलित कर लिया है।

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✧ 5. ब्रह्म — एकत्व की ऊर्जा ✧

जहाँ वर्ण समाप्त होते हैं,
वहाँ ब्रह्म शुरू होता है।
ना शूद्र, ना वैश्य, ना क्षत्रिय, ना ब्राह्मण —
सब एक में विलीन।
यह वह क्षण है जहाँ
“कर्तव्य” भी झर जाता है,
सिर्फ़ अस्तित्व बचता है।

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निष्कर्ष

वेद की वर्ण व्यवस्था समाज के लिए नहीं,
आत्मा के लिए थी।
वह चार दीवारें नहीं,
चार दिशाएँ थीं —
जहाँ से चेतना यात्रा करती थी।
जिसे हमने जाति बना दिया,
वह असल में विज्ञान था।
ऊर्जा का विज्ञान, चेतना का क्रम।

✧ समापन ✧

सनातन की वर्ण व्यवस्था कोई असभ्य पद्धति नहीं थी —
वह चेतना का अद्भुत विज्ञान थी,
जहाँ हर स्तर सृजनात्मक था,
हर कर्म रचनात्मक था।

इस व्यवस्था का दोष उसमें नहीं,
हमारी नासमझी में था।
हमने उसे समझने से पहले बाँट दिया,
अपने स्वार्थ, अपने भय और अपने अहंकार में।

जो छोटा था, उसका कर्तव्य छोटा था,
जो बड़ा था, उसकी ज़िम्मेदारी बड़ी थी —
पर किसी ने अपने धर्म को समझा ही नहीं।
शूद्र ब्राह्मण बनना चाहता था,
ब्राह्मण राजा बनना,
राजा व्यापारी बन गया,
और व्यापारी उपदेशक।
इस तरह सबने अपना केंद्र खो दिया।

इसलिए दोष किसी एक वर्ण का नहीं —
दोष उस अविकसित आत्मा का है
जो खुद को पहचानना भूल गई।

वेद ने कहा था —
हर मनुष्य अपने कर्म से आगे बढ़ सकता है,
हर शूद्र ब्रह्मा बन सकता है।
पर जब दिशा खो जाती है,
तो हर वर्ण अंधकार में गिरता है।

आज भी उपाय वही है —
दूसरे को दोष देना बंद करो।
भीतर झाँको।
स्वीकृति से सीढ़ी शुरू होती है,
कर्तव्य से चरित्र,
और मौन से ब्रह्म।

यही धर्म है —
अपने भीतर लौट आना,
अपनी पात्रता पहचानना,
और सृष्टि के विज्ञान में
फिर से एक हो जाना।

🙏🌸 — 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓣 𝓐𝓰𝓎𝓪𝓷

bhutaji

🇮🇳 "वो कलाम थे..." 🇮🇳

वो कोई आम इंसान नहीं थे,
वो तो आसमान को छूने का अरमान थे।
रॉकेट की गूंज में गूँजता नाम था उनका,
हर बच्चे के दिल का सलाम थे।

सादगी में बसता था उनका राज,
हाथों में किताब, आँखों में परवाज़।
सपनों को हकीकत में ढालने वाले,
देश के असली नायाब ताज।

वो कहते थे — “सपने देखो, पर सोकर नहीं,”
मेहनत करो, गिरो, उठो — रुककर नहीं।
मुस्कुराकर झेलते थे हर मुश्किल,
जैसे आग में भी फूल खिलते हों कहीं।

मिसाइल मैन तो थे ही, पर उससे बढ़कर,
वो बच्चों के दिलों के भगवान थे।
ज्ञान, कर्म और विनम्रता के प्रतीक,
वो अब्दुल कलाम, एक पहचान थे।

आज भी जब कोई बच्चा सपना देखता है,
वो मुस्कुराते हैं आसमानों में कहीं।
कहते हैं — “भारत का भविष्य तुम्हारे हाथों में है,”
बस उसे सच कर दिखाओ यहीं। ✨🇮🇳

karthikaditya

एक बुझती माचिस

gsharma

#Monkeyબાત
સમુદ્ર મંથન વખતે કઢી અને સંભારો પણ નીકળ્યા હતા - લાલચોળ સંભારો દાનવો ઝુંટવીને લઇ ગયા અને મધુરી કઢી દેવોના ભાગે આવી.

દેવોને અમૃત મળતા દાનવો પણ અમૃતની શોધમાં નીકળ્યા

#હળવાશથી_લેવું #ગાંઠિયાપટ્ટી
હકીકતમાં તો સમુદ્રમંથન વખતે ચા અને ગાંઠિયા નિકળા હતા
ગાંઠિયા દાનવોને મળ્યા પણ હાથીદાંત ધરાવનાર દાનવોને ઢીલા લાગ્યા એટલે નળિયા જેવા બનાવીને આરોગે છે
જ્યારે ચા દેવોને મળી એટલે બિચારા દાનવો ચા જેવુ પાણીથી ભરપૂર પ્રવાહી 4 ચમચી જેટલું 15 રૂપિયામાં વેંચીને સમૃધ્ધ બની રહ્યા છે.

સાચી વાત તો એ છે કે રાહુ અને કેતુ કઢી અને નળિયાના સેવન બાદ જ સુમધુર વણેલા ગાંઠિયા, સંભારો, ચટણી, મરચા માટે દેવો ભેગા બેઠા હતા ને પકડાઈ ગયા.

નારદમુનિએ પીળુ પ્રવાહી દૂરથી બતાવી કહ્યું કે કદાચ આ અમૃત જેવુ છે, ત્યારથી 'કઢી'ને અમૃત સમજી જાપટી રહ્યા છે

પછી નળિયા નીકળ્યા તે એને રાખવાની તો મહાદેવે ય ના પાડી . તેઓ કહે વિષ તો બરોબર છે બાકી આને આય થી લઇ જાવ....,

(શ્રી. બધિર અમદાવાદી ની પોસ્ટ સાભાર.
એમની હ્યુમરસ પોસ્ટ સરસ હોય છે.)
શ્રી. બધિર અમદાવાદી ની ફેસબુક પોસ્ટ સાભાર.

sunilanjaria081256

जीवन का सन्नाटा

कभी नया घर था, नई खुशबू थी,
दीवारों पर बच्चों की हँसी की लहर थी,
हर सुबह आँचल में सूरज भर लेता था,
हर शाम चाँदनी में सपनों को गिनता था।

वक्त ने कदम आगे बढ़ाए यूँ,
जो खिलखिलाते थे, उड़ गए धूप में कहीं,
किसी शहर में, किसी देस में बसे वो,
माँ-बाप की चौखट हो गई खाली वहीं।

दो हाथ थे, जो अब थमे नहीं,
एक ने मौन धरा, शून्य गगन में लीन हुआ,
दूसरा अकेला बैठा आँसुओं में भीगता,
जहाँ पहले हँसी थी, अब बस प्रतिध्वनि हुआ।

दिन ढले तो सूरज भी थक गया,
दीप बुझा, जीवन की लौ शांति बनी,
अंत में एक आत्मा चली सहज गति से,
पीछे छोड़ गई घर, यादें और चुप्पी धनी।

कभी मन्दिर में दीप जला था,
अब वही दीप है राख तले,
जीवन एक पूरा वृत्त बन गया,
जो शुरू हुआ, वहीँ जाकर थम गया अकेले।

आर्यमौलिक

deepakbundela7179

બોલવાનું માપદંડ:

કોઈના વિશે સત્યના પ્રમાણ વગર કઈ રીત બોલી શકાય.

મનોજ નાવડીયા

#vishvyatri #vishvkhoj #heetkari #manojnavadiya #manojnavadiyabooks #manojnavadiyapoetry #saravichar #maravichar #marivat #universe #nature #truth

manojnavadiya7402

🙏🙏सुप्रभात 🙏🙏

sonishakya18273gmail.com308865

🥲 imran 🥲

imaranagariya1797

Good morning friends

kattupayas.101947

आईना सूरत बयाँ करता है, शख़्सियत नहीं।

rohittalukdar7180