गुड़हल का वह फूल आज़ाद है,
कुछ कुदरत के बंधनों से,
सालभर हंसता-खिलता है,
बदले में थोड़ी-सी देखभाल
और प्यार चाहिए इसे,
फिर खूबसूरती हर तरफ,
जवानी इसकी आबाद है।
आज जहां ये खिला है,
वह एक जेलखाना है,
लेकिन इसे कोई एतराज़ नहीं,
चाहे पानी कोई साधु दे या कैदी
पानी तो पानी रहेगा,
और यह फूल खुश है यहां,
क्योंकि काम इसका मुस्कुराना है।
फूल हमेशा मुस्कुराता रहता था,
ना मुस्कुराने की कोई वजह भी नहीं थी,
वो कैदी भी रोज़ आता था,
पानी डालकर उस फूल में,
कुछ देर बैठकर उसके साथ
ना जाने क्या फुसफुसाता रहता था।
जैसे दो घनिष्ठ मित्र
आपस में बातें कर रहे हों,
शायद दोनों आदी हो चुके थे
एक-दूसरे के।
कभी बातें होतीं, कभी न भी होतीं,
लेकिन वो रोज़ाना मिल रहे थे।
गुड़हल का वह फूल अब राज़दार था,
कैदी की उन सब बातों का,
जो कभी वो नहीं कहता
किसी और के सामने।
अब वो भी समझने लगा था,
कि वो आज़ाद नहीं है
वो एक गुनाहगार था।
आज कैदी उस बाग में उदास बैठा है,
वह शांत है और हताश भी,
क्योंकि आज उसका घनिष्ठ मित्र
उस बाग में नहीं था।
था तो बस उसका खाली डंठल
बिलकुल खाली।
कैदी इसलिए निराश बैठा है।
गुड़हल का वह फूल
जलीक ने तोड़ लिया था।
शायद वो बेखबर था,
और जालिम भी।
उसे एहसास भी था?
उसने किसी का सहारा छीन लिया था।
जलीक तो बेहद खुश था,
उसने एक लंबे अरसे से
इस फूल पर अपनी नज़र
बनाकर रखी हुई थी।
बाग में वह फूल लगाने का सुझाव
भी जलीक का ही था।
आज वो सफल हो गया,
क्योंकि आज उसने फूल तोड़ लिया था।
जलीक को फूल की सुगंध
और रंग भा गया था।
उसने बड़े प्यार से फूल को एक थैली में
संभाल कर रख लिया।
जलीक जानता था आखिरकार
इस फूल को अपने असली घर
पहुंचने का सही वक्त आ गया है।
जलीक की अर्धांगिनी एक धार्मिक स्त्री थी,
उसने गुड़हल का वह फूल देखकर
जलीक की बेहद प्रशंसा की।
आज उसके पूजा का दिन था,
उसने ईश्वर के हाथ जोड़कर
शुक्रिया अदा किया।
वो मान बैठी कि ये उसकी भक्ति का फूल है।
वह तुरंत ही ईश्वर की आराधना में लग गई,
उसने वो फूल पूजा थाली में सबसे आगे रखा,
और सच्चे मन से पूजा में लीन हो गई।
वो प्रसन्नता के मारे,
आज हर बार से अधिक देर तक
पूजा करती रही।
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई,
बल्कि कहानी का आगाज़ अब हुआ है।
यहां अब बहुत सारी कहानियां जन्म लेंगी
केवल एक ही सवाल के साथ...
“फूल किसका है?”